Friday, November 15, 2013

लोमड़ी का पट्टा


-डॉ0 जगदीश व्योम

चंपक वन में लोमड़ और लोमड़ी का एक जोड़ा रहता था। दोनों ने एक झाड़ी के नीचे अपनी गुफा खोद रखी थी। दिनभर उसी गुफा में दोनों आराम करते और शाम को जब थोड़ा-थोड़ा अंधेरा हो जाता तब दोनो बाहर निकलते, इधर-उधर की चीजें खाकर अपना पेट भरते और सो जाते। जंगल में वे दूर-दूर तक घूमते रहते थे। इसलिए जंगल के चप्पे-चप्पे से वे परिचित हो गए थे। जब कभी जंगली कुत्ते उनका पीछा करते तो वे उन्हें भूल-भुलैयों में डाल देते और सुरक्षित अपनी गुफा में आ जाते।
जंगल दिनो-दिन कटते जा रहे थे। लोमड़ और लोमड़ी को इसकी बहुत चिन्ता थी। वे दोनों सोचते कि यदि इसी तरह जंगल कटते रहे तो आखिर हम कहाँ जाएंगे? दोनों इसी चिन्ता में सूखते चले जा रहे थे। जंगल में सरकार की ओर से वन-रक्षक नियुक्त थे। वे जंगल की रक्षा करते, कोई पेड़ काटता तो उसे वे रोकते,यदि नहीं मानता तो उसे पकड़ कर ले जाते। लोमड़ और लोमड़ी को वन-रक्षकों से बहुत आशा थी।
एक दिन शाम के समय लोमड़ और लोमड़ी अपनी गुफा से बाहर निकले, वे दोनों घूमते-घूमते जंगल के पूर्वी छोर तक पहुँच गए। वहाँ पहुँच कर उन्होंने देखा कि बहुत से आदमी कुल्हाड़ियों से पेड़ काट रहे हैं। वहीं पर एक मोटर खड़ी हुई है जिसमें एक आदमी बैठा हुआ है। लोमड़ और लोमड़ी को लगा कि यही आदमी जंगल को कटवा रहा है। यह निश्चय ही कोई चोर है। वे दोनों सोचने लगे कि अभी वन रक्षक आएंगे और इन्हें पकड़ कर ले जाएंगे। पेड़ काटने की आवाज वन रक्षकों ने भी सुनी, आवाज सुनकर कुछ ही देर में चार वन रक्षक वहाँ आ गए।
"आप लोग पेड़ क्यों काट रहे हैं ? आप जानते हैं कि यह जंगल के कानून में अपराध है?....... हम आपको पकड़ कर जेल भेज देंगे" - एक वन रक्षक ने पेड़ काटने वालों को धमकाया।
लोमड़ और लोमड़ी यह देखकर बहुत खुश हो रहे थे, वे सोच रहे थे,  " ये दुष्ट अब जेल जाएँगे, बड़े आए थे पेड़ काटने वाले......... पता नहीं इन आदमियों को क्या हो गया है  कि जंगल के दुश्मन बन बैठे हैं . ... जब देखो तब पेड़ काटते रहते हैं ।"
पेड़ काटने वालों ने पेड़ काटना रोक दिया और सब एक जगह इकट्ठे हो गए। मोटर में बैठा आदमी भी उतर कर वन रक्षकों के पास आ गया। 
लोमड़ और लोमड़ी पास की झाड़ी में छिपे, यह कार्यवाही बड़े ध्यान से देख रहे थे और खुश हो रहे थे।
"आप पेड़ क्यों कटवा रहे हैं ?" - एक वन रक्षक ने मोटर में बैठे आदमी के आने पर कहा.।
"हमने इस जगह को खरीद लिया है ....... मेरे पास इसका पट्टा है .......... मैं अभी आपको दिखता हूं।” 
-आदमी ने कहा और मोटर की ओर पट्टा लेने के लिए चला गया।
लोमड़ी सोचने लगी, "यह पट्टा क्या होता है ? ............ जरूर यह कोई बड़ी चीज होती होगी ?.......... तभी तो यह वन रक्षक पट्टे का नाम सुनकर चुप हो गया।"
लोमड़ी सचेत हो गई और टकटकी लगा कर देखने लगी ........ मोटर वाला आदमी मोटर तक गया और वापस आ गया, उसके हाथ में कागज का एक टुकड़ा था। उस आदमी ने वन-रक्षकों को कागज का वह टुकड़ा दिखाया। वन-रक्षकों ने कागज के उस टुकड़े को,जिसे वह आदमी पट्टा कह रहा था; देखा और मोटर वाले आदमी को चुपचाप वापस कर दिया. ....... वन-रक्षक चले गए, मोटर वाले आदमी ने मजदूरों को पेड़ काटने का आदेश दिया। सभी मजदूर फिर से पेड़ काटने में जुट गए। 
लोमड़ी सोचने लगी-  "यह कागज का टुकड़ा ही पट्टा होता है ? ....... यह तो वन रक्षकों से भी बड़ा होता है............. इसे देखकर वन रक्षक कैसे चुपचाप लौट गए. .... इसे दिखाकर तो कहीं भी जाया जा सकता है।
लोमड़ी अब रात-दिन यही सोचती रहती कि किसी तरह ऐसा ही एक पट्टा उसे भी मिल जाए .... फिर क्या.............. जहाँ जी चाहे वहाँ घूम सकेगी. ........ जंगली कुत्ते फिर उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएंगे......... जरा सा पट्टा दिखाते ही कुत्ते पूंछ दुबका कर भाग जाएंगे. ...... कितना अच्छा हो कि हमें भी एक पट्टा मिल जाए  
धीरे-धीरे समय बीतता गया। एक दिन पूर्णमांसी की रात थी। वे दोनों घूमने निकले। रात में भी दिन की तरह उजाला था। लोमड़ और लोमड़ी जंगल से थोड़ा बाहर निकल गए। रास्ते में लोमड़ी को कूड़े के ढेर पर पड़ा हुआ कुछ दिखाई दिया। पास जाकर लोमड़ी ने देखा.............. यह कागज का एक टुकड़ा था। लोमड़ी को ध्यान आया कि ऐसा ही कागज का टुकड़ा तो उस मोटर वाले आदमी के पास था. ........ कहीं यह पट्टा ही तो नहीं.........? लोमड़ी ने कागज के उस चमकने टुकड़े को उठा लिया ......... उसे उलट-पलट कर बड़े ध्यान से देखा। लोमड़ी कागज के उस टुकड़े को लेकर खुशी से उछलती-कूदती लोमड़ के पास आई। दोनों ने कागज के उस टुकड़े को उलट-पलट कर देखा........... लोमड़ी को अब पूरा-पूरा विश्वास हो गया कि कागज का यह टुकड़ा पट्टा ही है। लोमड़ी अब बहुत खुश थी। उसका सपना आज पूरा होने जा रहा था............. उसके पास अब ऐसी चीज थी जैसी पूरे जंगल में किसी के पास नहीं थी।
थोड़ी ही दूरी पर एक गाँव था। चाँदनी रात में गाँव बहुत सुन्दर लग रहा था। लोमड़ी का मन गाँव देखने को ललचाया। वह लोमड़ से बोली, "चलो आज गाँव की दीवारों तक घूम कर आएंगे। अब तो हमारे पास पट्टा है। इसे दिखाते ही गाँव के कुत्ते पूंछ दबाकर भाग जाएंगे............. अब हमें किसी से क्या डर है ?" 
लोमड़ गाँव जाने में कतरा रहा था। बचपन में एक बार उसे गाँव के कुत्तों ने घेर लिया था। उसकी आधी पूँछ तो कुत्ते नोंच कर खा गए थे। किसी प्रकार बेचारा बच पाया था। बचपन की याद करके लोमड़ गाँव की ओर जाने की बात सुनते ही काँपने लगा। लोमड़ बोला, "मेरी मानो तो गाँव के पास जाने की बात छोड़ो............. पता नहीं, कुत्ते पट्टे को देखकर इसे माने या न माने ? ........ इसलिए जान की बाजी लगाना ठीक नहीं।"
"तुम तो बेकार ही डरते हो। इतना डर भी ठीक नहीं.............. अरे! जब हमारे पास पट्टा है तो फिर डर कैसा ?.......... तुम नहीं जाना चाहते तो मत जाओ, मैं तो जरूर जाऊँगी, और गाँव का नज़ारा आज पास से देखूंगी।" -कहकर लोमड़ी गाँव की ओर चल दी। लोमड़ी को जाते देख बेचारा लोमड़ भी उदास मन से चल दिया। 
लोमड़ी ने पट्टा अपने मुँह में दबाकर रखा  था ............ दोनों गाँव की ओर चले जा रहे थे. ...... आज उन्हें किसी बात का डर तो था ही नहीं। गाँव के पास छोटी सी नहर थी। नहर के किनारे दोनों बैठ गए। यहाँ से गाँव बहुत अच्छी तरह से दिखाई दे रहा था। दोनों ने नहर का ठंडा-ठंडा पानी पिया और बैठकर गाँव देखने लगे।         
लोमड़ ने फिर कहा कि गाँव के और अधिक पास जाना ठीक नहीं।  "हमने गाँव देख लिया है........... अब चलो वापस लौट चलें।"  परंतु लोमड़ी को तो पट्टे पर कुछ ज्यादा ही भरोसा था। वह बोली, "गांव के और पास तक चलते हैं ........ तुम तो यूँ ही डरते हो।"  
लोमड़ बेचारा चुप हो गया। लोमड़ी ने छलांग लगाकर नहर पार की। पीछे-पीछे लोमड़ भी उदास मन से डरते-डरते चल दिया............... रास्ते में दो-तीन कुत्ते लेटे हुए थे। जैसे ही कुत्तों की निगाह लोमड़ और लोमड़ी पर पड़ी, वे उनकी ओर झपटे.............. कुत्तों ने इतनी शीघ्रता से झपट्टा मारा कि लोमड़ और लोमड़ी घबरा गए........... दोनों सरपट भागने लगे। किसी तरह नहर पार की........... आगे-आगे लोमड़ और लोमड़ी तथा पीछे-पीछे कुत्ते............भागते-भागते दोनों बेदम हो गए। दोनों को लग रहा था कि आज कुत्ते उन्हें खा ही जाएंगे। पट्टा दिखाने का तो समय ही कहाँ था? 
किसी तरह गिरते-पड़ते दोनो अपनी गुफा तक पहुँच गये। लोमड़ी आगे थी इसलिए गृफा में पहले घुस गई, उसके पीछे लोमड़ घुसने लगा. ....... लोमड़ गुफा में आधा ही घुस पाया था, तब तक कुत्ते आ गए. कुत्तों ने लोमड़ की आधी कटी हुई पूँछ पकड़ ली........ कुत्ते उसे बाहर खींचते और वह उसे अंदर की ओर खींचता........... लोमड़ सोचने लगा कि आज जान नहीं बचेगी। वह लोमड़ी से बोला, "पट्टा दिखा........ पट्टा .......... ! कुत्ते मुझे नोंचे डाल रहे हैं।" -लेकिन पट्टा दिखाने का अवसर ही कहाँ था?......... और उसे देखता भी कौन?........ कुत्ते तो आखिर कुत्ते ठहरे.. 
लोमड़ और लोमड़ी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे............ लोमड़ की रही-सही पूँछ भी कुत्तों ने नोंच डाली, उसकी पीठ में भी कई जगह घाव हो गए। लेकिन किसी तरह जान बच गई। 
" तुमने मेरी बात नहीं मानी............ कहाँ गया था....... तुम्हारा पट्टा उस समय ... जब कुत्ते मुझे नोंच रहे थे?......... अरे !........ पट्टा उसे दिखाया जाता है......... जो उसे देखना जानता हो..... तुम आदमी की बराबरी करने चली थीं........आदमी तो पढ़े-लिखे होते हैं........ वे नियम-कानून की बात जानते हैं, और उनका पालन भी करते हैं........... कुत्ते तो आखिर कुत्ते ही ठहरे., .............. वे भला क्यों देखने लगे तुम्हारा पट्टा ?.......... तुमने बिना सोचे-समझे निर्णय ले लिया....... मेरी तो दुर्गति ही हो गई"  -कराहते हुए लोमड़ ने कहा। 
"गलती मेरी थी, मैंने बिना सोचे-समझे आदमियों की नकल करनी चाही .............. मेरी मूर्खता का दण्ड तुम्हें मिला। किसी प्रकार जान बच पाई है................. मुझे मॉफ कर दो" - कहकर लोमड़ी सिसकने लगी।
दोनों ने कसम खाई कि आज से बिना सोचे-विचारे कोई कार्य नहीं करेंगे 
                               

-डॉ0 जगदीश व्योम

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